Wednesday, February 10, 2010

मैं

है वेग पवन देव का,प्रचंडता अगन की है

है क्रोध परशुराम का, भक्ति श्रवण की है

है टीस मुझमे शीत सी , है आग मुझमे ग्रीष्म सी

है भोग कामदेव सा , प्रतिज्ञा है भीस्म की



शिथिलता मुझमे मृत सी है और सजीव का बोध है

है मेरी राह गंगा की , हिमालय मेरा अवरोध है

मृत्यु सा अटल हूँ मैं है, आशा है मुझमे आरम्भ सी

परिपक्व हूँ उपज सा मैं , है फसल सा मुझको दंभ भी

है सत्य मुझमे युधिस्ठिर का, दुर्योधन सा छल है

है मुझमे असहायता सीता की, रावण सा बल है

तांडव मुझमे शिव का है , कृष्ण सा मुझमे रास है

उत्सव मुझमे इन्द्र का है, राम सा वनवास है

है त्याग मुझमे संत का , इचाएं है भक्त सी

है व्यर्थता मुझमे प्रजा की , महत्वपूर्णता है तख़्त सी

अधीर हूँ नवीन सा , अनुभूति है मुझमे जीर्ण सी

है मुझमे कुछ अर्ध सा ,और कामना है पूर्ण की

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