रूठ गए हैं मोसे मोरे श्याम रे
पुकारूँ मैं चाहे अब कितने नाम रे
नैना ना फेरे, देखे ना मोरी ओर
कितने ही पैर पटकूं चाहे, करूं मैं कितना शोर
रूठ गए हैं मोसे मोरे श्याम रे
काजल, केसर अब मेरे किस काम के
काहे सजूँ मैं, किसके लिए करूं श्रृंगार
बिन शाम मोरा गोरा अंग निराधार
रूठ गए हैं मोसे मोरे श्याम रे
कोरी हो गयी मिश्री, फीके हो गए आम रे
अम्ल समान नमक लागे है, पानी लागे क्षार
स्वाद गवायाँ जिव्हा ने, कुछ जाये ना गले के पार
रूठ गए हैं मोसे मोरे श्याम रे
किसी से ना बोलूं, ना किसी बात का ध्यान रे
शाम के ही गुण गाऊँ मैं, श्याम का ही सोचूँ
अपने श्याम की हंसी देख लूं, तो राम को पूछूं
Sunday, September 5, 2010
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